मानसून की फसले: पुरे भारत में मानसून की लहर है, ऐसे में किसानो के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि, इस मौसम में किस फसल की खेती की जाये? तो चलिए आज इस आर्टिकल में हम आपको बताते है कि कौनसी फसल मानसून के लिए होती है बेस्ट…
सब्जियों की खेती
भारत में कई तरह की सब्जिया उगाई जाती है, जो कि पुरे साल होती है| जबकि कुछ ऐसी सब्जिया भी होती है जो कि किसी एक सीसन में ही होती है| आज हम आपको बारिश में होने वाली सब्जियों के बारे में बतायेंगे…
कृषि विशेषज्ञों की माने तो बारिश के मौसम में तीन तरह की फसलो को उगाया जाता है, जो की हमे बहुत मुनाफा देती है| इन तीन फसलो में खड़ी फसल की सब्जिया, बेल वाली सब्जिया और जमीन के अन्दर उगने वाली सब्जिया होती है|
इसके साथ ही बारिश में लोबिया, फूलगोभी, प्याज, तुरई, भिन्डी, बैंगन, खीरा, पत्ता गोभी, मुली, मिर्च, पलक, लौकी, मुली आदि सब्जियों को भी बोया जाता है|
इसके साथ ही साथ पालक की खेती, भिंडी की खेती, ककड़ी की खेती, ग्वार की खेती, शिमला मिर्च की खेती, शकरकंद की खेती, खीरा की खेती, आलू की खेती, लौकी की खेती, करेला की खेती, गाजर की खेती, टमाटर की खेती आदि की खेती करना लाभदायक होता है।
इस बात का रखे खास खयाल
बारिश के समय सब्जिय उगाते समय इस बात का खास खयाल रखना चाहिये कि पौधों की जड़ो पर मिटटी ज्यादा लगी हो| क्योकि बारिश के दौरान पौधों की जड़ो से मिट्टी हट जाने का खतरा रहता है|
बारिश के समय सब्जियों की खेती करते समय कीटनाशको का प्रयोग भी करना चाहिए| बरसात में कई तरह के रोग पौधों को लग जाते है, ऐसे में खाद और कीटनाशको का प्रयोग करना जरूरी होता है|
उपयुक्त समय
भारत में जून से लेकर 15 सितम्बर तक बरसात का मौसम होता है| ऐसे समय में मिट्टी गीली रहती है, जो कि खेती करने के लिए एकदम उपयुक्त होती है|
करेला
करेला की बात करे तो यह बरसाती सब्जियों में से एक महत्वपूर्ण सब्जी है, क्योंकि करेला कई बीमारियों के इलाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। खासकर जो भी लोग मधुमेह के रोगी है उनके लिए यह एक वरदान का रूप है। कुछ जगह के लोग इसे कड़वा तरबूज भी कहते है, क्योंकि इसका स्वाद बहुत कड़वा होता है, और इसकी कड़वाहट का मुख्य कारण एल्कालॉइड मोमोर्डिसिन होता है।
देश भर के बाज़ारों में औषधीय गुणों की वजह से करेला की माँग हमेशा रहती है। आज बात करे तो करेला की ऐसी किस्में मौजूद हैं, जिसका उत्पादन अधिक के साथ ही साथ हम इसे कहीं भी और किसी भी मौसम में उगाया सकते है। करेले में अनेक खनिज, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट के साथ ही साथ विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। करेला मुख्य रूप से पाचन, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और गठिया जैसे रोगियों के लिए बहुत ज्यादा लाभकारी है |
करेले का बुवाई का समय
गर्मी के मौसम की फसल ले लिये करेले का बुवाई जनवरी से मार्च के बीच जाती है ।
बारिश के मौसम की फसल ले लिये करेले का बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है ।
टमाटर
टमाटर मुख्य रूप से उन सब्जियों में से है जिसका उपयोग हम पूरे साल करते है। इसी कारण इसकी मांग हर समय बाजार में रहती है। इसलिए किसान भाइयो टमाटर की खेती एक बहुत अधिक मुनाफे वाली खेती होती है। बरसात में तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहता है, जो टमाटर को तैयार करने में सहायक होता है।
टमाटर की बुवाई समय
नवंबर माह के अंत में टमाटर की नर्सरी तैयार कर जनवरी में टमाटर के पौधे की रोपाई कर सकते हैं,और पौधों की रोपाई मुख्य रूप से जनवरी के दूसरे सप्ताह में करना चाहिए।
अगर आप सितंबर माह में टमाटर की रोपाई करना चाहते हैं, तो मुख्यतः इसकी नर्सरी जुलाई के अंत में तैयार करें और साथ ही साथ पौधे की बुवाई अगस्त के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में कर लेना चाहिए।
टमाटर की फसल को जून-जुलाई में बोया जाता है। यह समय बारिश का होता है, इस कारण इसे बरसाती टमाटर की खेती भी कहा जाता है।
भिन्डी
बरसात में सब्जी की खेती में एक भिंडी की फसल भी है जो कि अच्छा उत्पादन देती है। भिन्डी एक लोकप्रिय और सबकी पसंद वाली सब्जी है और बात करे खरीफ या बरसात के सब्जी के बारे में तो ये सब्जियों में अपना प्रमुख स्थान रखती है जिसे लोग लेडीज फिंगर ( LADIES FINGER) या ओकरा ( OKARA ) के नाम से भी जाना जाता हैं।
भिंडी में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व
भिंडी में मुख्यतः प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन ‘ए’, बी, ‘सी’, थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन इत्यादि पाया जाता है।
भिंडी के बुआई का समय
ग्रीष्मकालीन -फरवरी-मार्च
वर्षाकालीन -जून-जुलाई
खीरा
खीरा बरसात में सब्जी की खेती करने वाले किसान भाइयो की पहली पसंद होती है और आपके जानकारी के लिए बता दे की खीरे का मूल स्थान भारत है। खीरा एक बेल की तरह लटकने वाला पौधा है जिसका प्रयोग लगभग सारे भारत में गर्मियों में सब्ज़ी के रूप में किया जाता हैं। भारत में जायद सीजन ( फरवरी-मार्च माह ) में खीरा की खेती का अपना एक मुख्य स्थान है और इतना ही नहीं बल्कि इसके साथ ही कद्दूवर्गीय सब्जियों में खीरा को सबसे महत्वपूर्ण फसल के रूप में माना गया है।
खीरे के फल को कच्चा, सलाद या सब्जियों के रूप में भी बहुत ज्यादा प्रयोग किया जाता है | सामान्यरूप से खीरे की खेती के लिए 120-150 मिलीमीटर बारिश की आवश्यकता होती ही है। साथ ही तापमान की बात करे तो यह मुख्य रूप से 25-30 डिग्री खीरे के लिए सबसे उत्तम रहता है। खीरे की खेती के लिए भूमि में जलनिकासी की व्यवस्था अच्छे से होना चाहिए।
खीरा के बुवाई का समय
खीरे की बुवाई का अलग-अलग जगह पर अलग-अलग समय होता है, उत्तरी भारत की बात करे तो यहाँ मुख्य रूप से खीरे की बुवाई फरवरी-मार्च व जून-जुलाई में की जाती है और वही अगर पर्वतीय क्षेत्रों की बात करें तो यहां मुख्यतः खीरे की बुवाई मार्च-जून तक की जाती है।
प्याज
बरसात में सब्जी की खेती में प्याज की फसल को मुख्य रूप से अप्रैल के महीने में खेतों में लगाया जाता है। खासतौर पर इस बात का विशेषरूप से ध्यान रखना जरूरी होता है, कि पौधों की रोपाई के समय का तापमान सामान्य रूप से 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न हो। बरसाती प्याज की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा बिहार में भी होती है।
प्याज की रोपाई करने से पहले हमे किसी भी नजदीक कृषि अनुसंधान केंद्र पर जाकर मिट्टी के पीएच मान को चेक करा लेना चाहिए। अगर भूमि का पीएच मान 5.5-6.5 के बीच में रहता है, तो मुख्यतः आप इसकी बुवाई आराम से कर सकते है | एक हेक्टेयर प्याज को लगाने के लिए मुख्य रूप से 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है
प्याज के बीज बोने का समय
मई के अंतिम सप्ताह से जून तक
प्याज का प्रतिरोपण
प्रतिरोपण के लिए अगस्त का महीना सही होता है |
टिंडे
टिंडे को इंग्लिश में Round Melon, Round Gourd, Indian Squash भी कहा जाता है| यह उत्तरी भारत गर्मियों की सबसे महत्तवपूर्ण सब्जी में से एक है। टिंडे का मूल स्थान भारत है। टिंडे की फेमिली कुकरबिटेसी प्रजाति से संबंधित है।इस कारण इसे मुख्य रूप से बरसात में सब्जी की खेती का श्रेय दिया जाता है।इसके कच्चे फल को मुख्य रूप से सब्जी बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं। 100 ग्राम बिना पके फलों में मुख्य रूप से 1.4% प्रोटीन, वसा 0.4%, कार्बोहाइड्रेट 3.4%, कैरोटीन 13 मि.ग्रा. और 18 मि.ग्रा. विटामिन इत्यादि होते हैं।
इसकी खेती के लिए बलुई मिट्टी अच्छी मानी जाती है। जिसका पीएच 5.5-7 के मध्य होना चाहिए जबकि आजकल दोमट्ट मिट्टी में भी इसकी मुख्य रूप से खेती की जाती है।
टिंडा की बुवाई का समय
टिंडा की बुवाई का समय फरवरी से मार्च और जून से जुलाई का होता है।