JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024
JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024
JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024: जलझूलनी एकादशी का मेला राजस्थान के मंडफिया गाँव में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मंडफिया राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है, और यह स्थान श्री सांवलियाजी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के सांवले रूप की पूजा की जाती है, और जलझूलनी एकादशी के अवसर पर यहाँ एक बड़ा मेला लगता है। मंडफिया का जलझूलनी एकादशी मेला धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेला भक्तों के लिए भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करने का एक अवसर प्रदान करता है। मेले की धूमधाम, रथ यात्रा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्तिमय वातावरण इसे विशेष बनाते हैं, और यह राजस्थान के महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है।
मंडफिया में जलझूलनी एकादशी मेला:
JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024
- श्री सांवलियाजी मंदिर:
- श्री सांवलियाजी मंदिर मंडफिया में स्थित है और भगवान श्रीकृष्ण के सांवले रूप के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान कृष्ण की प्रतिमा की पूजा की जाती है, और जलझूलनी एकादशी के दिन यहां विशेष पूजा और आरती का आयोजन होता है। JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024:
- मेले का आयोजन:
- जलझूलनी एकादशी के दिन मंडफिया में एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और भक्तजन भाग लेते हैं।
- इस दिन मंदिर में भगवान सांवलियाजी की प्रतिमा को सुंदर तरीके से सजाया जाता है, और भक्तजन उनके दर्शन के लिए आते हैं। JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024:
- रथ यात्रा और शोभायात्रा:
- इस अवसर पर भगवान सांवलियाजी की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान की प्रतिमा को रथ में बिठाकर पूरे गाँव में शोभायात्रा निकाली जाती है। भक्तजन रथ को खींचते हुए भगवान के जयकारे लगाते हैं और पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024:
- शोभायात्रा में विभिन्न झांकियों और भगवान कृष्ण की लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह यात्रा मंदिर से शुरू होकर गाँव के विभिन्न स्थानों से होकर गुजरती है और फिर वापस मंदिर में समाप्त होती है।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम:
- मेले के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इनमें भजन-कीर्तन, नाटक, लोकगीत, और लोकनृत्य शामिल होते हैं। ये कार्यक्रम भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनके जीवन से संबंधित होते हैं।
- भक्तजन इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं और भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते हैं।
- प्रसाद वितरण और भंडारा:
- मेले के दौरान प्रसाद वितरण और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। भक्तजन मंदिर में प्रसाद ग्रहण करते हैं और भंडारे में भोजन का आनंद लेते हैं। JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024:
- प्रसाद के रूप में विशेष रूप से माखन-मिश्री और अन्य मिठाइयाँ वितरित की जाती हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं।
- व्यापार और मनोरंजन:
- मेले में विभिन्न प्रकार के छोटे व्यापारिक स्टाल्स लगाए जाते हैं जहाँ पर लोग खाने-पीने की वस्तुएँ, खिलौने, कपड़े और अन्य वस्त्र आदि खरीदते हैं। JalJhulni Ekadashi Mela Mandafiya 2024:
- मेले में मनोरंजन के लिए झूले, खेल, और अन्य गतिविधियाँ भी होती हैं, जिनका लोग आनंद लेते हैं।
जल झुलनी मेला क्या है?
जल्झुलनी मेला एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह मेला जल्झुलनी एकादशी के अवसर पर आयोजित होता है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस पर्व को भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा और उनकी शोभायात्रा के रूप में मनाया जाता है। विशेष रूप से चारभुजा जी और कृष्ण के मंदिरों में इसका आयोजन होता है।
जल्झुलनी मेला का महत्व:
- भगवान की शोभायात्रा:
- इस दिन मुख्य मंदिरों से भगवान विष्णु या चारभुजा जी की प्रतिमा को धूमधाम से पालकी में सजाया जाता है और शोभायात्रा निकाली जाती है।
- शोभायात्रा में बैंड, ढोल-नगाड़े, और लोक संगीत के साथ भक्तगण जयकारे लगाते हैं और भगवान की आराधना करते हैं।
- यह यात्रा नजदीकी जलाशयों (सरवर, नदी या तालाब) तक जाती है, जहाँ भगवान को झूले में बैठाकर जल में डुबकी लगाई जाती है। इसे ‘जलविहार’ या ‘विहार’ कहते हैं।
- झूला झुलाना:
- जलाशय से वापस आते समय भगवान को झूला झुलाने की रस्म निभाई जाती है। यह रस्म भगवान कृष्ण के बाल रूप को समर्पित होती है, जिसमें उनकी बाल लीला का प्रतीक झूलना माना जाता है।
- विशेष पूजा और अनुष्ठान:
- जल्झुलनी एकादशी पर व्रत रखने और विष्णु पूजा का विशेष महत्व है। भक्त उपवास रखते हैं और भगवान के भजन, कीर्तन और कथा का आयोजन करते हैं।
- इस दिन चारभुजा जी के मंदिरों में विशेष आरती और प्रसाद वितरण किया जाता है।
- मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम:
- मेले में पारंपरिक हस्तशिल्प, भोजन के स्टॉल, और बच्चों के खेल-तमाशे होते हैं। कई स्थानों पर लोक संगीत, नृत्य और पारंपरिक नाटकों का आयोजन भी होता है।
- मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और यह मेलजोल का एक बड़ा अवसर होता है, जहाँ गांव और शहर के लोग एक साथ मिलते हैं।
- प्रमुख स्थल:
- राजस्थान: मांडफिया (चारभुजा जी मंदिर), नाथद्वारा (श्रीनाथ जी मंदिर), करौली (माधव जी मंदिर) और अन्य।
- गुजरात: द्वारका, सोमनाथ और अन्य कृष्ण मंदिरों में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
- धार्मिक मान्यता:
- जल्झुलनी एकादशी और इस मेले के पीछे मान्यता है कि भगवान विष्णु अनंत रूप में जल में निवास करते हैं और जलविहार से उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इसे ‘अक्षय फल’ देने वाला पर्व माना जाता है, जहाँ भक्त अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और भगवान से मोक्ष की कामना करते हैं।
जल्झुलनी मेला धार्मिक आस्था, भक्ति, और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि लोक जीवन और संस्कृति का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करता है।