विजय स्तम्भ : “भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश”

Victory Tower

विजय स्तम्भ,भारत के राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित एक स्तम्भ या टॉवर है। इसे मेवाड़ नरेश महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा की सेना पर सारंगपुर की लड़ाई में विजय के स्मारक के रूप में सन् 1440–1448 इस्वी के मध्य बनवाया था। यह राजस्थान पुलिस और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के प्रतीक चिह्न में शामिल है। इसे “भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश” और “हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर” और विष्णु स्तम्भ भी कहते हैं।

संरचना

इसकी ऊंचाई 122 फिट (37.19 मीटर) और चौड़ाई 30 फिट हैं। यह एक 9 मंजिला इमारत है।

वास्तुकार

इसे महाराणा कुम्भा ने बनवाया था। इसके वास्तुकार: मंडन, जैता व उसके पुत्र नाथा, पुंजा थे। उपेन्द्रनाथ डे ने इसको विष्णु ध्वज कहा है, क्योकि इसकी प्रथम मंजिल पर विष्णु मंदिर है|

वास्तु

122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण राणा कुम्भा अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।

“कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ का संबंध मात्र राजनीतिक विजय से नहीं है, वरन् यह भारतीय संस्कृति और स्थापत्य का ज्ञानकोष है।” मुद्राशास्त्र के अंतराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान प्रो॰एस.के.भट्ट ने स्तम्भ की नौ मंजिलों का सचित्र उल्लेख करते हुए कहा है कि “राजनीतिक विजय के प्रतीक स्तम्भ के रूप में मीनारें बनायी जाती है जबकि यहां इसके प्रत्येक तल में धर्म और संस्कृति के भिन्न-भिन्न आयामों को प्रस्तुत करने के लिए भिन्न-भिन्न स्थापत्य शैली अपनाई गई है।”

इस टावर की 9 वी मंजिल पर कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति लिखी है इसके लेखक अत्रि ओर महेश भट्ट है इन दोनों को अभिकभी के नाम से भी जानते है।

विजय स्तम्भ का ऐतिहासिक महत्त्व

आपको बता दें कि विजय स्तंभ भगवान विष्णु को समर्पित है जिसमें कई हिंदू देवी देवताओं की नक्काशी और मूर्तियां हैं। इस टॉवर के आंतरिक भाग में उस समय उपयोग किए जाने वाले हथियार संगीत वाद्ययंत्र और अन्य उपकरण है। यह राजपूतों द्वारा प्रचलित धार्मिक बहुलवाद का एक अच्छा उदाहरण है। विजय स्तंभ की सबसे ऊंची मंजिल पर रानी पद्मावती की एक छवि शामिल है। इसके बाद तीसरी मंजिल पर अल्लाह शब्द 9 बार अरबी भाषा में खुदा हुआ है। विजय स्तम्भ शानदार वास्तुकला का एक टुकड़ा है, जो शहर मैं आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद आकर्षित करता है और उन्हें भारत के इतिहास पर गर्व महसूस कराता है

विजय स्तम्भ यात्रा के लिए सुझाव

अगर आप विजय स्तम्भ की यात्रा करने के लिए जा रहे हैं तो बता दे कि आपको यहां रात के समय आना चाहिए क्योंकि यह टावर रात में अपनी रोशनी से चारों तरफ उजाला कर देता है। अगर आप शाम के समय यात्रा करते हैं तो आप इस स्थान के शानदार दृश्य को देख सकते हैं

विजय स्तम्भ घुमने के लिए सबसे अच्छा समय

अगर आप राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल विजय स्तम्भ के लिए जाना चाहते हैं तो बता दें कि यहां की यात्रा करने का आदर्श समय अक्टूबर से लेकर मार्च का समय होता है। अगर आप विजय स्तम्भ देखने के लिए जा रहें हैं तो रात का समय चुनें क्योंकि शाम के समय यह स्तम्भ बेहद आकर्षक नज़र आता है। इसके साथ ही शाम के समय मौसम काफी ठंडा होता है जिसकी वजह से आप अपनी सैर का पूरा मजा उठा सकते हैं। गर्मी के मौसम में यहां की यात्रा करना बिलकुल उचित नहीं है क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बेहद गर्म होता हैं।

विजय स्तम्भ की जटिल नक्काशी है इसकी विशेषता

विजय स्तम्भ की ऊपरी मंजिल पर एक शीष-फलक खुदा हुआ है, जिसमें चित्तौड़गढ़ के शासकों और उनके कामों के बारे में जानकारी दी गई है। आपको बता दें कि यह काम राणा कुंभा दरबारी विद्वान और अत्री और उनके पुत्र महेश ने किया था। स्तम्भ की 5 वीं मंजिल पर वास्तुकारों के नाम भी खुदे हुए हैं।

अन्य नाम विष्णु ध्वज 
प्रकार स्तम्भ 
स्थान चित्तोडगढ, राजस्थान 
निर्माण कार्य शुरू 1440 इस्वी 
निर्माण कार्य संपन्न 1448 इस्वी
स्वामित्व भारत सरकार व राजस्थान   सरकार 
व्यवस्थापन भारतीय पुरातत्व 
ऊंचाई 122 मीटर 
वास्तुकार जेता 
बनवाया महाराणा कुम्भा 

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